CSR मद के पैसे से बदली स्कूल की तस्वीर, बच्चों को मिला नया स्कूल भवन, कई जिलों के CSR मद का पैसा कहां जाता है पता ही नही चलता

बलौदा बाजार। छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार में 2019 से भवन की समस्या से जूझ रहे शासकीय प्राथमिक शाला सरकीपार के बच्चों को अब नया भवन मिल गया है। नया स्कूल भवन अल्ट्राटेक सीमेंट संयंत्र कुकुरदी के सीएसआर मद से बनाकर दिया गया है। इसका उद्घाटन होने के साथ ही नए प्राथमिक शाला भवन में संयंत्र के प्रबंधक ने बच्चों के बैठने के लिए कुर्सी टेबल की व्यवस्था भी कर दिया है। साथ ही शिक्षकों के लिए शिक्षक कक्ष, मध्यान्ह भोजन के लिए रसोईघर, छात्र-छात्राओं के लिए शौचालय और बच्चों के खेलने के लिए झूला लगाया गया है।

दरअसल नए स्कूल भवन में बच्चों के बौद्धिक, मानसिक व शारीरिक विकास के लिए शिक्षा के साथ खेलकूद का भी विशेष प्रावधान किया गया है। नए भवन की विशेषता है कि विद्यालय के सभी कक्षा को विशेष रूप से बच्चों के गुणोत्तर विकास के लिए नैतिक, बौद्धिक, मानसिक व शारीरिक विकास के लिए कक्षा के अनुसार दिवाल पर चित्रकला का पेंटिंग किया गया है। जिससे विद्यार्थियों की तार्किक शक्ति बढ़ेगी। स्कूल भवन के उद्घाटन अवसर पर अल्ट्राटेक सीमेंट संयंत्र के प्रबंधक की ओर से मानव संसाधन प्रमुख प्रबल प्रताप सिंह, माइंस प्रमुख मयंक सैनी, ईआर प्रमुख जितेन्द्र तंवर, सीएसआर प्रमुख रूपेन पटनायक, सरकीपार की सरपंच रेणुका जांगड़े, उप सरपंच ईश्वर जांगड़े सहित प्राथमिक शाला की प्रधान पाठक सुधा वर्मा सहित ग्रामीण जन उपस्थित थे। बच्चों ने बताया कि उनके पास स्कूल भवन नहीं था, पहले वे टाट पट्टी पर बैठते थे अब टेबल बेंच के साथ अच्छी सुविधा मिल गई है, साथ ही बहुत ही सुंदर पेंटिंग की गई है। वहीं शिक्षकों ने कहा कि स्कूल भवन 2019 से जर्जर हो गया था, तब से पंचायत भवन में स्कूल संचालित हो रहा था। जहां तीन कक्षा ही संचालित हो पाती थी उसमें भी असुविधा होती थी। अब स्कूल को नया भवन मिलने से बच्चों को पढ़ाने और उन्हें विषय समझाने में मदद हो रही है।

आपको बता दें हर जिले में उद्योग है और उद्योगों से हर जिले को CSR मद से करोड़ों रुपए मिलते है। लेकिन इस मद का पैसा कहां खर्च किया जाता है। किसी को पता ही नही चलता। कोई भी जिला आज की स्थिति में ये बताने की स्थिति में नहीं है की पिछले पांच साल में इस मद में कितनी राशि आई और उस राशि का कहां और कैसे उपयोग किया गया है। एक अनुमान के अनुसार हर साल हजारों करोड़ रुपए के कागजों में काम होता है।

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