बिलासपुर। शराब घोटाले के मुख्य आरोपी पूर्व IAS अफसर अनिल टूटेजा को हाई कोर्ट ने नियमित जमानत देने से इंकार कर दिया है। जस्टिस अरविंद वर्मा ने सुनवाई के दौरान उनके ऊपर तीखी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि भ्रष्टाचारी देश के दुश्मन है और भ्रष्ट लोक सेवकों का पता लगाना और ऐसे व्यक्तियों को दंडित करना भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 का एक आवश्यक आदेश है।
जस्टिस अरविंद वर्मा के सिंगल बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि भ्रष्टाचार वास्तव में मानव अधिकारों का उल्लंघन है, विशेष रूप से जीवन, स्वतंत्रता, समानता और भेदभाव न करने के अधिकार का। यह सभी मानव अधिकारों की प्राप्ति में एक आर्थिक बाधा है। आवेदक पर लगाए गए आरोप अत्यंत गंभीर हैं। लिहाजा अपराध की प्रकृति और गंभीर कारणों से याचिकाकर्ता को नियमित जमानत पर रिहा करने का आदेश देना उचित नहीं है। सिंगल बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि याचिकाकर्ता सहित कई सरकारी अधिकारियों की भूमिका उजागर हुई है और अपराध में उनकी सहभागिता भी स्थापित हुई है। जांच से पता चला है कि याचकिाकर्ता ने सह-आरोपियों के साथ मिलकर एक सिंडिकेट्स बनाकर रिश्वत ले रहे थे। कोर्ट ने कहा है कि आर्थिक अपराध जिनमें गहरी साजिशें शामिल हों और जिनमें सार्वजनिक धन की भारी हानि हो उन्हें गंभीरता से लिया जाना चाहिए और गंभीर अपराध माना जाना चाहिए। आर्थिक अपराधों का पूरे समाज के विकास पर गंभीर असर पड़ता है। अगर राज्य की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने वाले आर्थिक अपराधियों को उचित तरीके से सजा नहीं दी जाती है, तो पूरा समुदाय दुखी होगा।
राज्य शासन की ओर से पैरवी करते हुए सीनियर एडवोकेट ने कहा कि अब तक की जांच से पता चला है कि अनिल टूटेजा, अरुणपति त्रिपाठी और अनवर ढेबर सिंडिकेट के मुख्य व्यक्ति है। यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता शराब घोटाले के मुख्य आरोपियों में से एक था और उसने सरकारी कर्मचारी होने के नाते अपने पद का दुरुपयोग किया और अन्य आरोपियों के साथ शराब की अवैध बिक्री में शामिल रहा। जहां तक चिकित्सा मुद्दों के संबंध में समानता के आधार का संबंध है, तो ऑस्टियोआर्थराइटिस, यकृत विकार, जीजीटीपी (यकृत क्षति), हाइपोनेट्रेमिया, उच्च रक्तचाप, हाइपोथायरायडिज्म और चिंता से पीड़ित है, ऐसी कोई गंभीर चिकित्सा समस्या नहीं है। इसलिए वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता समानता के आधार पर जमानत देने का दावा नहीं कर सकता है। राज्य शासन के अधिवक्ताओं ने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता ने सह-आरोपियों के साथ मिलकर राज्य के खजाने को भारी वित्तीय नुकसान पहुंचाया है। इनके अपराध की अनुमानित आय लगभग 1660,41,00,056/- रुपये है। यह बहुत बड़ी अघोषित धनराशि सिंडिकेट के माध्यम से अर्जित अनुपातहीन संपत्ति है। जिससे राज्य के खजाने को नुकसान पहुंचा है। जिसके लिए वर्तमान आवेदक के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 और 12 के तहत जुर्म दर्ज की गई है।
00 अपराधों की लंबी फेहरिश्त
0 एसीबी/ईओडब्ल्यू, रायपुर द्वारा धारा 109,120-बी आईपीसी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(1) 9 (डी) और 13 (2) के तहत अपराध के लिए एफआईआर क्रमांक 09/2015 पंजीकृत किया गया, जिसमें आरोप पत्र दायर किया गया है और विशेष न्यायाधीश, एसीबी, रायपुर के समक्ष विचारण लंबित है
0 ईडी द्वारा पीएमएलए की धारा 3 और 4 के तहत पंजीकृत ईसीआईआर संख्या 01/2-029 जिसमें आवेदक के खिलाफ जांच चल रही है।
0 एफआईआर संख्या 196/2023, पीएस कासना, ग्रेटर नोएडा, जिला गौतम बुद्ध नगर, यूपी द्वारा धारा 420. 468. 471, 473, 484 और 120-बी आईपीसी के तहत अपराध के लिए पंजीकृत।
0 ईसीआईआर/आरपीजेडओ/04/2024, ईडी द्वारा पीएमएलए की धारा 3 और 4 के तहत पंजीकृत किया गया है और मामला विद्वान विशेष न्यायाधीश पीएमएलए के समक्ष लंबित है।
0 ईसीआईआर/आरपीजेडओ/04/2024, ईडी द्वारा पीएमएलए की धारा 3 और 4 के तहत पंजीकृत किया गया है और मामला विद्वान विशेष न्यायाधीश पीएमएलए के समक्ष लंबित है।
0 एसीबी/ईओडब्ल्यू द्वारा धारा 420, 120-बी आईपीसी और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 के तहत अपराध करने के लिए एफआईआर संख्या 36/2024 दर्ज की गई।
0 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7,7ए, 8, 13(2) और आईपीसी की धारा 182. 211. 193,195ए, 166ए और 120-बी के तहत अपराधों के लिए एसीबी द्वारा 4.11.2024 को एफआईआर संख्या 49/2024 दर्ज की गई।
0 वर्तमान मामले में, वह सिंडिकेट के आपराधिक कृत्यों में शामिल था आरोप पत्र के साथ संलग्न व्हाट्सएप चैट का विवरण प्रथम दृष्टया वर्तमान मामले में आवेदक की संलिप्तता को दर्शाता है।
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