बिलासपुर। सरकारी जमीन की अफरा-तफरी के खेल में हर छोटा बड़ा शामिल है, राजस्व विभाग से लेकर नगर निगम पंचायत और संबंधित तमाम विभागों के अधिकारी मलाई चाट रहे हैं, जहां से भी उन्हें मोटी रकम मिलती दिखाई दी वही खेल हो जा रहा है। जमीन से जुड़े विभाग के अधिकारी अब इतने मजबूत हो गए हैं कि उनके खिलाफ किसी तरह की कोई करवाई हो ही नहीं रही है, क्योंकि वह पैसों के बल पर काम कर रहे हैं वैसे हर आदमी को पैसा तो प्रिय है ही चाहे अधिकारी हो या चपरासी। इस हमाम में सभी नंगे हैं। इसलिए भी किसी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हो रही है। जहां सेटिंग बिगड़ रही है वहीं बुलडोजर दिखाई देता है। जहां मजबूत सेटिंग है कोई चाहे कितनी भी ताकत लगा ले उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होने वाली। बिरकोना की आदिवासी भूमि की अवैध प्लाटिंग भी उसी का हिस्सा है। हालांकि वर्तमान में जिला प्रशासन ने लीज वाली एक बड़े जमीन में बड़ी कार्रवाई कर दी है जिसकी प्रशंसा न सिर्फ बिलासपुर बल्कि प्रदेश भर में हो रही है। शासकीय जमीन को वापस लेने के साथ-साथ जमीन बेचने वालों पर एफआईआर भी दर्ज कर दी गई है। यह मामला बिलासपुर शहर के कुदुदंड से जुड़ा हुआ है जहां टुकड़ों में कच्चे के 54 प्लॉट बेच दिए गए। करोड़ों की सरकारी जमीन की लीज निरस्त कर वापस इसे राजस्व रिकार्ड में शासकीय भूमि के रूप में दर्ज करने का काम शुरू हो गया है। कलेक्टर अवनीश शरण के निर्देश पर भू माफिया के अलावा लीजधारकों व जमीन की बिक्री करने वालो के खिलाफ एफआईआर कराया गया है। प्राइम लोकेशन की 2.13 एकड़ जमीन जो कुदुदंड में स्थित है इस जमीन का भूमाफिया ने पहले लीज नवीनीकरण कराया और उसके बाद इसे 54 टुकड़ों में बांटकर बेच दी। लीज की शर्तों का उल्लंघन करने के आरोप में कलेक्टर के निर्देश पर लीज निरस्त कर दिया गया है। शासकीय भूखंड का वापस शासकीय मद में दर्ज कर दिया गया है। राजस्व रिकार्ड में दुरुस्तीकरण के साथ ही अब यह जमीन एक बार फिर राजस्व रिकार्ड में शासन की हो गई है।कुदुदंड की दो एकड़ 13 डिसमिल जमीन पर अवैध प्लाटिंग की गई थी। इस जमीन को भूपेंद्र राव तामस्कर को लीज में दी गई थी। जमीन की लीज 2015 में खत्म होने पर 31 मार्च 2045 तक लीज की अवधि लीजधारक के आवेदन पर बढ़ा दी गई थी। नवीनीकरण के बाद भूपेंद्र राव तामस्कर निवासी तिलक नगर चाटापारा ने आवासीय प्रयोजन के लिए दी गई नजूल भूमि को बिना अनुमति और बिना भवन अनुज्ञा के टुकड़ों में बेच दिया गया। 92980 वर्ग फुट नजूल भूमि में ना तो नगर निगम से अनुमति ली गई ना ही टाउन एंड कंट्री प्लानिंग से ले आउट पास कराया गया। जरुरी शर्तों की अनदेखी करते हुए उप पंजीयक ने सभी 54 टुकड़ों की रजिस्ट्री कर दी।नजूल की जमीन की टुकड़ों में की गई बिक्री का नामांतरण भी पूर्व सरकार के आदेश से कर दिया गया। बता दें कि नगर निगम कमिश्नर ने नामांतरण पर रोक लगाते हुए इस संबंध में पत्र भी लिखा था। नजूल की करोड़ों की जमीन बेचने का मामला संज्ञान में आने के बाद कलेक्टर ने संयुक्त कलेक्टर मनीष साहू की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय जांच टीम गठित की थी। जांच टीम ने बताया था कि 30 साल के लिए नवीनीकरण आवासीय प्रयोजन के लिए किया गया था। इसके बाद भी इसे टुकड़ों में बांटकर बेच दिया गया।
00 लीजधारक भूपेंद्र तामस्कर व बिल्डर राजू गर्ग (राजेश अग्रवाल) के खिलाफ एफआईआर
इस पूरे मामले में लीज धारक भूपेंद्र राव तामस्कर और बिल्डर राजू गर्ग (राजेश अग्रवाल) के खिलाफ कलेक्टर के निर्देश पर नजूल तहसीलदार शिल्पा भगत ने सिविल लाईन थाने में अपराध दर्ज करवाया है। भूपेंद्र राव तामस्कर ने 22 अक्टूबर 2020 को राजू गर्ग से 13 करोड़ रूपये में भूमि को बेचने का सौदा किया था। इकरारनामा में राजू गर्ग द्वारा उक्त भूमि को पूर्ण रूप से विकसित कर रोड, नाली एवं बाउंड्रीवॉल, बिजली पानी की व्यवस्था करने के अलावा विभिन्न विभागों से जरुरी अनुमति लेने व ले आउट पास कराने के बाद टुकड़ों में बेचने जैसी शर्तें भी रख दी थी। इसके पहले भी राजू गर्ग के एक महमंद वाली साइट पर एसडीएम पीयूष तिवारी ने जाकर कार्यवाही की थी। वहां भी अवैध प्लाटिंग को हतोत्साहित करने निर्माण कार्य पर बुलडोजर चला था।
00 एक को मां एक को मौसी वाली कार्रवाई
एक तरफ जिला प्रशासन पूरी शिद्दत के साथ इस मामले में कार्रवाई कर आगे न्यायालय की तरफ जा रहा है वहीं दूसरी तरफ बिरकोना की आदिवासी भूमि के मामले में छोटी-मोटी कार्यवाही करने के बाद निगम और राजस्व अधिकारियों ने अपना हाथ खींच लिया है। जिस जगह पर निगम ने कार्रवाई की थी अब फिर से वहां सब कुछ पहले जैसा हो गया है।यानि ये माना जा सकता है कि वहां पर दिखावे की ही कार्रवाई की गई थी।न जाने इन्हें किस बात का डर है गलत तो यहां भी हुआ है वहां की तरह इस मामले में भी कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए थी मगर न जाने किसकी सेटिंग इतनी मजबूत है कि इस मामले में कोई कार्यवाही करने के लिए तैयार नहीं है। हालांकि निगम आयुक्त ने कहा था की जांच के बाद इस मामले में एफआईआर कराई जाएगी। मगर अब तक एफआईआर नहीं हुई है। एक ही जिला प्रशासन का दो अलग-अलग रवैया लोगों की समझ से परे है। या तो आदिवासी भूमि मामले में सेटिंग मजबूत हो गई और राजू गर्ग वाले मामले में कमजोर हो गई। तभी तो एक तरफ कार्यवाही कर दी गई, और दूसरे को अभय दान दे दिया गया। जिला प्रशासन को इस मामले में चिंतन करने की जरूरत है कि आखिर वह जनता को बताना क्या चाहते हैं।एक को मां और एक को मौसी वाली कार्रवाई कब तक चलेगी।
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