बिलासपुर। राजनैतिक पार्टी के नेताओं में कुर्सी और कैमरे का मोह या कहें बीमारी स्वाभाविक रूप से देखा जा सकता है। लेकिन ये बीमारी कांग्रेस में कुछ ज्यादा ही दिखाई देती है। कांग्रेस के कुछ पदाधिकारी और नेता तो इस बीमारी से इस कदर ग्रसित है की प्रोटोकाल की भी परवाह नहीं करते। आज हम बात कर रहे है कांग्रेस भवन में कन्हैया कुमार के प्रेस कान्फ्रेस के पहले की जहां पत्रकारों ने अपने सामने कुर्सी के मोह को प्रत्यक्ष रूप से देखा। दरअसल कांग्रेस ने पत्रकारों को प्रेसवार्ता के लिए 10.30 बजे का समय दिया था लेकिन कन्हैया कुमार 12 बजे के आसपास आए। हालांकि पत्रकार और कांग्रेस के पदाधिकारी समय पर पहुंच गए थे। कांग्रेस भवन में कन्हैया कमर के आजूबाजू में दर्जनभर कुर्सियां रखी गई थी ताकि कांग्रेस के पदाधिकारी, विधायक और पूर्व विधायक भी सामने बैठ सके। बीच की कुर्सी कन्हैया कुमार के लिए खाली रखा गया था। उसके आजू बाजू में शहर अध्यक्ष और जिला अध्यक्ष की कुर्सी थी। समय पर पहुंचकर उन कुर्सियों में जिला अध्यक्ष विजय केसरवानी, शहर अध्यक्ष विजय पांडेय, कोटा विधायक अटल श्रीवास्तव, पंकज सिंह, राकेश शर्मा, अभय नारायण, जावेद खान समेत कई नेता बैठ चुके थे। सभी कन्हैया कुमार के इंतजार में बैठ के गप मार रहे थे। इसी बीच शैलेश पांडेय की एंट्री होती है और वे सभी को दुआ सलाम करते है। इसके बाद वे खाली कुर्सी खोजने लगते है। लेकिन उन्हें कोई खाली कुर्सी नही दिखती और न उन्हे कोई कुर्सी देने के लिए तैयार हुआ। लिहाजा वे लौटकर पीछे जाने लगते है। इसी बीच शहर अध्यक्ष विजय पांडेय अपनी कुर्सी बैठने के लिए देने लगते है। लेकिन शैलेश पांडेय शहर अध्यक्ष के प्रोटोकाल के समझते हुए उनकी कुर्सी में बैठने से इंकार कर देते है और पत्रकारों के बीच आकर बैठ जाते है। कन्हैया कुमार के इंतजार में सभी गपबाजी करने लगते है। इसी बीच उनके आने की सूचना मिलती है। लिहाजा सभी नेता अपनी कुर्सी छोड़ हाथ में बुके लेकर कन्हैया कुमार का स्वागत करने के लिए बाहर निकलते है। इस बीच सभी अपनी कुर्सी की चिंता बनी रहती है। लिहाजा सभी अपने विश्वासपात्र को उसने बैठाकर बाहर निकल जाते है। लेकिन कोटा विधायक अटल श्रीवास्तव अपनी कुर्सी में रुमाल छोड़कर जाने लगते है। उनको कुर्सी में रुमाल छोड़कर जाते देख पत्रकार और वहां उपस्थि कांग्रेस के नेता ठहाका लगाकर हंस पड़ते है। सभी उन्हे कहते भी है अपनी कुर्सी अच्छे से संभालकर रखें कहीं कोई खींच न ले। अटल भी कहां चुकने वाले थे उन्होंने भी कहा कि इसीलिए तो रुमाल रखके जा रहा हूं। ताकि कोई कब्जा न कर ले। लेकिन कन्हैया कुमार के अंदर आते ही कइयों की कुर्सी इधर उधर हो चुकी थी। लेकिन रुमाल वाली कुर्सी पर कोई बैठने की हिम्मत नही कर पाया और न ही शैलेश पांडेय को कोई कुर्सी मिल पाई, लिहाजा वे अखरी तक पत्रकारों के साथ ही बैठे रहे।
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